यात्रा वृत्तांत >> आखिरी चट्टान तक आखिरी चट्टान तकमोहन राकेश
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बहुआयामी रचनाकार मोहन राकेश का यात्रावृत्तान्त
मलबार
शब्द मलबार में जो आकर्षण है, वही आकर्षण वहाँ दृश्य-विस्तार में भी है। लाल ज़मीन, घनी हरियाली और बीच-बीच में नारियल के सूखे पत्तों से बनायी गयी घरों की छतें। कनानोर में रहकर और आसपास घूमकर मुझे लगा कि वह सारा प्रदेश एक बहुत बड़ा नारियल का उद्यान है जिसमें बीच-बीच में सुपारी, काजू, पान आदि जैसे दृश्य सौन्दर्य के लिए ही लगा दिये गये हैं और जिसमें छोटी-छोटी नदियों और बैंक-वाटर्ज़ का पानी भी उसी उद्देश्य से फैला दिया गया है। इस तरह के सौन्दर्य में घिरकर रहना अपने में एक चाह हो सकती है, पर वहाँ गरमी बहुत पड़ती है। एक वहीं के व्यक्ति ने मज़ाक़ कहा कि मलबार में साल में नौ महीने गरमी पड़ती है, और बाकी तीन महीने बहुत गरमी पड़ती है।
मलबार की उपजाऊ ज़मीन एक तरह से कच्चा सोना उगलती है। वहाँ की उपज को देखते हुए वहाँ के निवासियों का जीवन-स्तर काफ़ी अच्छा होना चाहिए, पर ऐसा नहीं है। प्रकृति की भरपूर देन के बीच भी अधिकांश लोग अभावपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। कनानोर में उमायल फैक्टरी के पास के मैदान में अक्सर मज़दूरों की मीटिंगें हुआ करती थीं। मैं बोलने वालों की भाषा नहीं समझ पाता था, पर उनकी ध्वनियों से भी अर्थ का बहुत-कुछ अनुमान लगाया जा सकता था। उन दिनों किसी फैक्टरी में हडताल चल रही थी। समस्या वही थी जो हुआ करती है। बाज़ार मन्दा होने के कारण मालिक लोग मज़दूरों का वेतन घटाना चाहते थे, और ऐसा न होने पर फ़ैक्टरी बन्द करने की धमकी दे रहे थे। मज़दूर अपने वेतन कम करने के लिए तैयार नहीं थे। शाम को जुलूस निकलता, उसके बाद मीटिंग होती और रात की हवा में मलयालम की मूर्धन्य ध्वनियाँ स्टेनगन की तरह गूँजती सुनाई देतीं। मैं कई बार उन ध्वनियों को सुनने के लिए ही रुक जाया करता।
वहाँ रहते कई बार सोचा करता कि कितनी साधारण चीज़ें मनुष्य के निर्माण में कितना बड़ा हाथ रखती है। समुद्र-तट की हवा, मछली, खोपड़े का तेल और उबले हुए चावल-इन उपकरणों से प्रकृति मलबार में जिस शरीर-सौन्दर्य की सृष्टि करती है, उसे गठन, तराश और उठान की दृष्टि से असाधारण कहा जा सकता है। पतली खाल, सुन्दर आँखें और अजन्ता की मूर्त्तियों के-से होठ-ये वहाँ के शरीर-सौन्दर्य की विशेषताएँ नहीं, सामान्यताएँ हैं। परन्तु बहुत से चेहरों पर अभाव की छाया स्पष्ट दिखाई देती है। लगता है कि प्रकृति के उस सुन्दर निर्माण में कोई मैली चीज़ हस्तक्षेप कर रही है। मलबार के पक्षी भी बहुत सुन्दर हैं-परन्ध, कोच्छ, कडल काक, सभी। उनके निर्माण और विकास में किसी का हस्तक्षेप नहीं, इसलिए वे बहुत स्वस्थ भी हैं। वे धरती और वातावरण से जितना कुछ ग्रहण करना चाहते हैं, उन्मुक्त भाव से कर सकते हैं। परन्तु मनुष्यों की यह विवशता है कि वे ऐसा नहीं कर पाते।
सांस्कृतिक दृष्टि से मलबार मलयालम-भाषी केरल प्रदेश का एक अंग है। (केरल तब तक केवल एक सांस्कृतिक इकाई थी, आज की तरह राजनीतिक इकाई नहीं।) उत्तर भारत में जिस उत्साह के साथ होली और दीवाली मनायी जाती है, वहाँ उसी उत्साह के साथ ओणमू और विशु, ये दो त्यौहार मनाये जाते हैं। ओणम् अगस्त-सितम्बर में पड़ता है और वर्ष का प्रमुख त्यौहार माना जाता है। इस त्योहार के साथ राजा महाबली की कथा सम्बद्ध है। (उत्तर भारत में इन्हीं महाबली को हम राजा बली के रूप में जानते हैं, जिनसे पौराणिक कथाओं के अनुसार, वामन ने तीन पैर ज़मीन माँगी थी और फिर सारी ज़मीन पर पाँव फैलाकर उन्हें पाताल में भेज दिया था।) ओणम् की कथा है कि राजा महाबली के राज्य में केरल में बहुत समृद्धि थी और प्रजा बहुत सुखी थी। वामन ने राजा महाबली को केरल छोड़कर पाताल जाने के लिए विवश कर दिया। (यह सम्भवत: उत्तर भारतीय शक्ति प्रसार का रूपक है। केरल में महाबली आदर्श राजा है, जबकि उत्तर के पुराण उन्हें दैत्यों का अधिपति बताते हैं।) चूँकि महाबली बहुत लोकप्रिय राजा थे और उस प्रदेश को उन्हीं ने समृद्ध बनाया था, इसलिए उन्हें यह सुविधा दी गयी कि वे वर्ष में एक बार पाताल से आकर केरल की प्रजा को आशीर्वाद दे जाएँ जिससे उस प्रदेश की समृद्धि यथावत् बनी रहे। ओणम् का दिन राजा महाबली के पाताल से लौटकर आने का दिन माना जाता है।
वैसे ओणम् फ़सल काटने का त्यौहार है। इस अवसर पर लोग नौ दिन तक घरों के आगे फूलों से तरह-तरह की सजावट करते हैं। ओणम् के दिन घर के आँगन में महाबली की मिट्टी की मूर्त्ति स्थापित करके उसकी पूजा की जाती है। पप्पड़म् (पापड़) और केले से बनाये गये खाद्य-पदार्थ ओणम् के दिन के विशेष पकवान हैं।
विशु दूसरा त्यौहार है जो अप्रैल-मई में पड़ता है। यह मलयालम संवत्सर के आरम्भ के दिन मेदम् मास की पहली तारीख़ को मनाया जाता है। उससे पहले की रात को घर के बड़े कमरे में खनी (विभिन्न व्यंजन, जिनमें उबला हुआ चावल नहीं रहता) रखकर दिये जला दिये जाते हैं। सवेरे उठते ही घर के लोग खनी के दर्शन करके पूजा आदि करते हैं।
उत्तर भारत के त्यौहारों में से वहाँ महाशिवरात्रि मनायी जाती है। यह भी वहाँ के प्रमुख त्यौहारों में से है। दीवाली एक सीमित वर्ग में ही मनायी जाती है। होली और वसन्त वहाँ नहीं मनाये जाते।
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